गुरुवार, अगस्त 22, 2013

बीएसएनएल मुलाजिम फिर हडताल को मजबूर ?

बुधवार से बजाया हडताल का बिगुल
लुधियाना:21 अगस्त 2013:(साहिर के शहर से//रेक्टर कथूरिया): अपनी मांगों पर जोर देने के लिए भारत संचार निगम लिमिटेड के कर्मचारी एक बार फिर संघर्ष की राह पर हैं। बीएसएनएल इंप्लाइज यूनियन एंड नेशनल फेडरेशन के सदस्यों ने बुधवार को अपनी मांगों को लेकर बड़े हो जोशो खरोश से तीन दिवसीय हड़ताल की शुरुआत की। इस दौरान इन मुलाज़िमों ने अपनी मांगों को लेकर मैनेजमेंट के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की और इस मुद्दे पर अपनी एकजुटता का सबूत दिया।
 इस बार भी इन संघर्षशील मुलाज़िमों को न तो कड़कती धुप की कोई चिंता थी और न ही बार बार घिर  कर बरसात करते बादलों की। ये मुलाजिम अपनी ही धुन में मग्न थे और याद दिल रहे थे अपने इरादों की-जैसे कह रहे हों-हर जोर-ज़ुल्म की टक्कर में हडताल हमारा नारा है !  यूनियन के डिस्ट्रिक्ट सेक्रेट्री बलविंदर सिंह ने कहा कि मैनेजमेंट द्वारा उन्हें दी जाने वाली एटीसी व मेडिकल सुविधा में उनकी मांग के अनुसार मसौदा तैयार नहीं किया गया इस लिए वे मजबूर होकर हडताल की राह पर उतरे हैं। 
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बंद किया पांचवा मेडिकल शुरू हो, पीएलआइ बोनस दिया जाए, 1-1-2007 के बाद भर्ती किए गए कर्मचारियों की वेतन बढ़ाया जाए, कर्मचारियों को ईएसआइ और आइकार्ड की सुविधा दी जाए, कर्मचारियों में किसी तरह की कोई छंटनी न की जाए, आदि उनकी मांगें हैं। मुलाजिम नेता बलविंदर सिंह ने कहा कि जबतक मैनेजमेंट उनकी मांगे नहीं मानेगी, तब तक धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा। हम अपनी मांगें मनवाए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। 
इस मौके पर बुध सिंह, परमीत सिंह, अवतार सिंह जंडे, अमरजीत चंदर, जसवंत सिंह, गुरचरण सिंह, सुरिंदर सिंह, सुरजीत सिंह, तजिंदर सिंह, प्रेम सिंह, सुदेश जोशी, अमरीक सिंह, सुरजीत सिंह, भगवंत सिंह, आरपी जाहू, विजय वर्मा, मोहिंदर सिंह, मलकीत चंद व यूनियन के बहुत से अन्य नेता व सक्रिय सदस्य भी मौजूद थे। अब देखते हैं कि सरकार के दरबार में इनकी सुनवाई कब होती है और कब होता है इनकी जीत का जश्न ?
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शनिवार, मार्च 09, 2013

निधन के 33 साल बाद डाक टिकट जारी

08-मार्च-2013 16:14 IST
राष्‍ट्रपति ने जारी किया साहिर लुधियानवी पर स्‍मृति डाक टिकट
भारत के राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने आज राष्‍ट्रपति भवन में स्‍वर्गीय साहिर लुधियानवी की जयंती (8 मार्च, 2013) पर स्‍मृति डाक टिकट जारी किया। 

इस अवसर पर राष्‍ट्रपति ने कहा कि स्‍वर्गीय साहिर लुधियानवी मुख्‍य रूप से एक ऐसे शायर के रूप में प्रसिद्ध थे जो आम आदमी की रोज़मर्रा जीवन से जुड़ी परेशानियों और उनके सब्र के इम्तिहान के बारे में लिखते थे। प्रेम और सुंदरता पर अपनी रचनाओं के कारण उन्‍होंने युवाओं के बीच भी अपनी पहचान बनाई। उन्‍होंने समकालीन दौर के मूल्‍यों और सामाजिक चिंताओं को बेहद संवेदशीलता के साथ लिखा था। 

राष्‍ट्रपति ने कहा कि उर्दू शायरी को फिल्‍मों में इस्‍तेमाल करना साहिर लुधियानवी के महानतम योगदान में से एक है। उन्‍होंने फिल्‍म लेखक संघ के ज़रिए गीतकारों की पहचान के लिए भी लड़ाई लड़ी। श्री मुखर्जी ने कहा कि उनके निधन के 33 साल बाद उनकी जयंती पर स्‍मृति डाक टिकट जारी किया जाना इस बात का सबूत है कि अपनी शायरी और अपने गीतों के जरिए वे आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। 

इस अवसर पर केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री कपिल सिब्‍बल तथा केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री श्री मनीष तिवारी भी उपस्थित थे। (PIB)

वि.कासोटिया/प्रियंका/संजना-1165

साहिर के शहर से........ .....ساحر کے شہر سے  ·

शुक्रवार, मार्च 08, 2013

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर

जनाब साहिर लुधियानवी साहिब की एक प्रसिद्ध रचना 
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …
ये कूचे ये नीलामघर दिलकशी के
ये लुटते हुये कारवाँ ज़िन्दगी के
कहाँ हैं, कहाँ है, मुहाफ़िज़ ख़ुदी के *
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

ये पुरपेच गलियाँ, ये बदनाम बाज़ार *
ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार
ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार *
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

ये सदियों से बेख्वाब, सहमी सी गलियाँ
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियाँ *
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियाँ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन *
थकी-हारी साँसों पे तबले की धन-धन
ये बेरूह कमरों में खाँसी की ठन-ठन
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें, ये गुस्ताख फ़िकरे *
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

यहाँ पीर भी आ चुके हैं जवाँ भी
तनोमंद बेटे भी अब्बा मियाँ भी *
ये बीवी भी है और बहन भी है माँ भी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

मदद चाहती है ये हौवा की बेटी *
यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी *
पयम्बर की उम्मत, जुलेखा की बेटी *
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये गलियाँ ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

साहिर के शहर से अब गौरव सग्गी मुंबई की ओर

फ़िल्मी दुनिया में फिर लुधियाना की मौजूदगी का अहसास
पंजाबी फिल्मों की बात चले तो जो नाम और चेहरे एकदम जहन में आते है उनमें से एक चेहरा है सरदार भाग सिंह का। चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बाहर निकलते ही सडक पार करके उनके घर में जाना किसी वक्त रोज़ की बात हुआ करती थी। वक्त की गर्दिश में फिर यह सिलसिला न चाहते हुए ही लगातार कम होता चला गया। यहाँ रोज़ी रोटी के फ़िक्र में ऐसे सिलसिले अक्सर कम हो जाते हैं। पर उनकी जो बातें अब तक जहन में हैं उनमें से एक है सोमवार। वह सोमवार को उपवास रखते थे। भगवान् शिव में उनकी गहरी आस्था थी। शिव का नटराज रूप उनके ड्राईंग रूम में भी सजा होता। कभी मूड होने पर वह भगवान् शिव और कला की विस्तृत चर्चा भी करते। 
Photo Courtesy:Sara Tariq
इसी तरह गायन और अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाली सुलक्षना पंडित भी बहुत अध्यात्मिक थी।सर्दी हो या ओले बरस रहे हों हर रोज़ सुबह पूरे केशों सहित स्नान करना और फिर पूजा पाठ में काफी समय गुज़ारना उनकी दिनचर्या में शामिल था। उनकी आवाज़ में भी जादू सा था और अभिनय में भी। बहुत सी लोकप्रिय फिल्मों में यादगारी भूमिका निभा पाना और फिर फिल्म फेयर एवार्ड भी हासिल कर लेना कोई आसान बात नहीं थी। हालाँकि उनके सामने चुनौती भी सख्त थी और प्रतियोगिता भी। 
दर्शकों के मन में हनुमान जी की छवि बनने के बाद दारा सिंह जी भी धर्म कर्म में बहुत रुचि लेने लगे। शायद यही कारण है कि दर्शक उनमें हनुमान जी को ही देखने लगे। पहले पहले मुझे लगता था की शायद इस तरह के सात्विक किस्म के लोग तामसिक प्रवृतियों से भरी फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं हो सकेंगे। पर इन सबकी सफलता देख कर दुनिया के साथ साथ मैं खुद भी हैरान रह गया। पंजाबी फ़िल्मी दुनिया के महारथी भाग सिंह ने किस तरह अपनी बेटी बरखा को पत्रकारिता की बारीकियों से अवगत करा कर एक कुआलिफाईड पत्रकार बनाया। अभिनय में नई जान डालने 
वाली अपनी धर्मपत्नी कमला भाग सिंह के साथ किस तरह कदम दर कदम मिला कर कठिन से कठिन रास्तों पर चल कर सफलता की ऊंचाइयों को छुआ यह किसी करामत से कम नहीं। मुझे उनके परिवार के साथ इतय एक एक पल बिना किसी कोशिश के अब तक याद है। भाग सिंह जी का गोरा   रंग और मेहंदी रंगी भूरी दाड़ी कुल मिलकर उनकी शख्सियत बहुत ही आकर्षक लगती रिटायर्मेंट के बाद इस तरह की  सहेज पान तभी संभव होता है जब दिल और दिमाग के ख्याल भी बहुत खूबसूरत हों। ज़िन्दगी के सभी रंगों को उन्हों ने मुस्करा कर समझा। हर मुश्किल को उन्होंने हर बार सुस्वागतम कहा। एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी जीते जीते वह अचानक ही अपनी सहजता के कारण खास हो जाते। मुझे याद है एक बार एक फ़िल्मी मेले के आयोजन को लेकर कुछ पत्रकार दोस्तों ने काफी कुछ विरोध में लिखा पर जब वे भाग सिंह जी के सम्पर्क में आये तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया। वे समझ गए कि मामले को देखना अपनी अपनी सोच पर भी निर्भर करता है। जादू केवल जादूगर की छड़ी में नहीं शब्दों में भी होता है। बाद में यह विरोध दोस्ती में बदल गया। वे पत्रकार दोस्त दिल्ली से उन्हें मिलने विशेष तौर पर चंडीगढ़ आते।
लुधियाना का गौरव सग्गी 
इसी तरह दारा सिंह जी ने भी धमकियों और चुनौतियों को बहुत ही सहजता से सवीकार करके ज़िन्दगी जीने के नए अदाज़ सिखाये। चंडीगढ़ में दारा स्टूडियो की स्थापना का काम आसान नहीं था। मुझे पता चला कि उन्हें उतनी जगह नहीं मिली जितनी वह चाहते थे। किसी सनसनीखेज़ खबर की चाह में मैंने दारा जी से इसी मुद्दे पर सवाल कर दिया। दारा जी मुझे देखकर मुस्कराए और बहुत ही सहजता से बोले अगर सरकार यह जगह भी न देती तो हम क्या कर लेते? दारा जी जैसे महान लोगों ने जिंदगी को जो सलीके और सबक सिखाये उनकी अहमियत वक्त के साथ साथ लगातार बढती रहेगी। उनके पास बैठ कर, उनसे बातें करके एक नई ऊर्जा का अहसास होता था।
आज अचानक यह सब कुछ मुझे याद आ रहा है एक नए युवा चेहरे को देख कर। लुधियाना का गौरव सग्गी भी फ़िल्मी दुनिया को समर्पित है लेकिन पूरी तरह सात्विक रहते हुए। तकरीबन तकरीबन हर रोज़ उपवास, हर रोज़ पूजा पाठ, हर रात्रि मेडिटेशन। सोने में चाहे आधी रात हो जाये लेकिनउठना वही रात को दो बजे और ठंडे पानी से नहा कर रम जाना पूजा पाठ में। मेडिटेशन, रियाज़ या फिर शूटिंग, रिकार्डिंग या कोई और परफोर्मेंस बस यही है गौरव की दिनचर्या। मैंने कभी गौरव को आम लडकों की तरह इधर उधर आलतू फालतू बातों में नहीं देखा। लुधियाना से मुम्बई और मुम्बई से विदेश तक यही है उसका लाइफ स्टाइल।
कहते हैं धरती गोल भी है बहुत छोटी भी। बस इसी सिद्धांत पर एक बार हमारी मुलाकात पठानकोट में हुई। सुबह मूंह अँधेरे से लेकर देर शाम तक हम एक साथ रहे। यह सब किसी प्रोजेक्ट को लेकर था और इसके बारे में वहां शायद किसी को खबर भी नहीं थी लेकिन हमें वहां बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के जाना पड़ा एक ही आयोजन में। हम सब ने जलपान किया लेकिन गौरव का उपवास था। खाना तो दूर जल या चाये की एक बूँद भी नहीं। अचानक ही मेरे सामने किसी आयोजक ने मंच पर गौरव का नाम अनाऊंस करवा दिया और उसके बाद कमरे में आ कर कहा कि अब आप मंच पर आ जाइये अगली बारी आपकी है। सुन कर मुझे चिंता हुई। मुझे मालूम था कि गौरव ने सुबह से कुछ नहीं खाया। 
चाये या पानी का एक घूँट भी नहीं। मुझे लगा कि शायद यह लड़का कहीं मंच पर गिर न पड़े। इसके साथ ही न वहां गौरव की टीम थी न ह साज़ और संगीत का पर्याप्त प्रबंध। पर गौरव के चेहरे पर न चिंता, न डर, न ही घबराहट। आशंकित मन के साथ कुछ ही पलों के बाद मैं भी पीछे पीछे बाहर बने मंच पर चला गया।वहां मेरे देखते ही देखते गौरव ने भगवान् का नाम लेकर अपना गायन शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वहां मौजूद सभी लोग पहले तो मस्त हुए फिर उठ कर गौरव के साथ साथ झूमने लगे।मुझे वह दिन अब भी याद आता है तो मुझे फिर फिर हैरानी होने लगती है। सुबह से लेकर रात तक मैंने गौरव पर से आँख नहीं हटाई तां कि वह छुप कर कहीं कुछ खा तो नहीं रहा पर सचमुच उसने सारा दिन कुछ नहीं खाया-पीया। मुझे लगता है कि इस के बावजूद इतनी अच्छी परफारमेंस किसी दैवी शक्ति से ही संभव हो सकी। गौरतलब है की मेडिटेशन करने वालों की कार्यक्षमता अक्सर बढ़ जाती है। मन की शक्ति एकाग्र हो जाने से उनकी योग्यता विकसित होती है।यही कारण है गौरव एक्टिंग में भी काम कर रहा है और गीत संगीत में भी। इसके साथ ही कैमरे की बारीकियों  को भी वह बहुत ही अच्छी तरह से समझता है। अपनी लोकप्रिय एल्बम "रब दा सहारा" में उसने गायन और अभिनय दोनों में अपना जादू दिखाया है। आखिर में एक बात और इस सबके लिए वह अपने पिता अश्विनी सग्गी और माता के आशीर्वाद को ही एक वरदान मानता है।-रेक्टर कथूरिया 


You may contact Gaurav at gauravsaggi@ymail.com
Mobile:(Punjab)  09914301145
Mobile: (Mumbai) 0996 734 049
तेज़ी से बुलंदियां छू रहा गौरव सग्गी 

रविवार, अप्रैल 22, 2012

कामरेड अनिल रजिमवाले ने लुधियाना में कहीं खरी खरी बातें

इन्कलाब न बटन दबाने से आयेगा और न ही थाने पर हमला करने से
लुधियाना में भी बहुत उत्साह से मनाया गया लेनिन का जन्म दिन
मानव समाज को दरपेश समस्याएं किसी दैवी शकित की तरफ से नहीं बल्कि मानव के हाथों मानव की लूट खसूट के कारन ही पैदा हो रही हैं. यह विचार आज लुधियाना में आयोजित एक विचार गोष्ठी में मुक्य वक्ता व  मार्क्सवादी दार्शनिक कामरेड अनिल र्जिम्वाले ने रखा.  इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कमियूनिस्ट  पार्टी की लुधियाना इकाई ने सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन के जन्म दिवस के अवसर पर किया गया था. इसके साथ ही पार्टी विश्व भूमि दिवस को मनाना भी नहीं भूली.न्याय व  बराबरी पर आधारित भारत के विकास मार्ग की चर्चा करते हुए विचार गोष्ठी में इस बात पर चिंता  व्यक्त की गयी न-न्राब्री और बेरोज़गारी जैसी समस्याएं बहुत ही तेज़ी से लगता विकराल हो रही है. इस हकीकत को स्वीकार करने के साथ ही मार्क्सवादी दार्शनिक कमरे अनिल र्जिम्वाले ने चेताया कि न तो कोई बटन द्बनेसे इन्कलाब आयेगा और न ही कीई थाने टी. पर हमला करने से. इन्कलाब अगर आयेगा तो उए आप और हम जैसे आम आदमी ही लायेंगे. उन्होंने इसके लिए बार बार कार्ल मार्क्स के हवाले दिए और यद् कराया कि ,आर्क्स के रस्ते पर चल कर ही इन्कलाब आएगा.
इस बेहद गंभीर मुद्दे पर बहुत ही सहजता से लगातार बोलते हुए कामरेड अनिल ने बीच बीच में शायरी का पुट देते हुए समझाया कि सुबह होती है शाम होती है तो यह किसी दैवी शक्ति के कारन नहीं बल्कि प्रकृति और  विज्ञानं के कारण. साम्यवाद के सिद्धांतों कि विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा हर विज्ञानं ने मार्क्सवाद को और मजबूत किया, बार बार सही साबित किया. इन्कलाब में हो रही देरी की तरफ संकेत करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया की न तो बटन दबाने से इन्कलाब आने वाला है और न ही थाने पर हमला करने इन्कलाब आएगा. ढांडस बंधाते हुए उन्होंने कहा की सरमायेदारी से समाजवाद की तरफ जाता रास्ता लम्बा भी है और कठिन भी. उन्होंने स्पष्ट किया की हमारे लड़ने के कई तरीके हैं और जन संघर्षों का तरीका भी हमारा है. उन्होंने कहा की इन्कलाब आयेगा और इस के लिए इन्कलाब के मार्क्सवादी सिद्धांत जन जन तक पहुँचाने होंगें.  उन्होंने अपने लम्बे भाषण के बावजूद श्रोतायों को बांधे रखा. इक्क्लाबी सिद्धांतों के साथ साथ उन्होंने इतिहास की चर्चा भी की.  उन्होंने अख़बार निकलने के काम को भी इकलाब के लिए सहायक बताया और तकनीकी विकास के सदुपयोग की तरफ इशारा करते हुए कहा की मोबाईल और इंटरनेट का उपयोग भी इस कार्य के लिएये किया जाना चाहिए. इस सेमिनार में डाक्टर अरुण मित्र भी थे, डी पी मौड़ भी और कामरेड विजय कुमार भी और कई अन्य कामरेड भी. संगोष्ठी में महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर शामिल थीं. -रेक्टर कथूरिया  

शनिवार, अप्रैल 21, 2012

मांगना और दुःख के मारे ज़रूरतमंद लोगों में बाँट देना

गौरवगाथा  लुधियाना के जगदीश बजाज की 
Gyan Sathal mandir
रेलगाडी तेज़ी से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही थी. रात गहराने लगी तो थके टूटे मुसाफिर भी सोने की तैयारी करने लगे.  उस डिब्बे में एक जोड़ी भी थी जिसमें पुरुष को बहुत ही जल्द गहरी नींद आ गयी थी. उसके साथ सफ़र कर रही महिला यात्री की खों में भी नींद अपना रंग दिखाने लगी. इतने में ही एक टिकट चैकर आया और उसने उस महिला से टिकट माँगा. महिला यात्री पुरुष के कंधे को झंक्झौरते हुए जोर से बोली जीजा जी जीजा जी. पुरुष हडबडा कर उठा और बोला क्या बात है. महिला ने चैकर की तरफ इशारा किया और कहा टिकट..! पुरुष कोई रेलवे मुलाजिम था, उसने झट से अपनी जेब में से एक पास निकाला और चैकर के हवाले कर दिया. पास देख कर चैकर बोला श्रीमान इस पास पर आप अपनी पत्नी के साथ तो सफ़र कर सकते हैं लेकिन साली के साथ नहीं. पुरुष यात्री ने टिकट चैकर की ने सारी बात समझ कर उसे पूरे विस्तार से समझाया कि जब उसकी पहली पत्नी का देहांत हुआ तो परिवार वालों ने मेरी दूसरी  शादी  उसीकी बहन के साथ कर साथ कर दी जो रिश्ते में मेरी साली ही लगती थी. इस तरह मेरी यह प्यारी सी साली मेरी पत्नी बन गयी पर मुझे जीजा जी कहने की आदत इसे अब तक पड़ी हुयी है सो यह अब भी मुझे जीजा जी ही कहती है. यह कहानी सुनाते हुए उस बुज़ुर्ग के चेहरे पर एक नयी चमक, होठों पर कुछ  रूमानी सी मुस्कान और आँखों में हल्की सी शरारत आ गयी. कहने लगे मुझे भी बस आदत सी पड़ी हुयी है....छूटती ही नहीं...मैंने पूछा कैसी आदत...तो कहने लगे...यही...मांगने की आदत....बस मुझे पता चल जाये कि इसकी जेब में पैसे हैं...फिर मैं उन्हें निकलवा ही लेता हूँ.... कई बार इस आदत को छोड़ना चाहा छोड़ना चाहा पर यह आदत जाती ही नहीं. साथ ही वह ये भी बताते हैं कि मांगना आसान नहीं होता. सब कि औरत बन के रहना पड़ता है. हजारों झमेले सामने आते हैं. कई बार ऐसा होता है कि लोग सब के सामने रसीद बुक से पर्ची तो कटवा लेते हैं पर पैसे दिए बिना चले जाते हैं. उस हिसाब को सम्भालना, फिर उनके चक्कर लगाना और उनसे पैसे निकलवाना...सब बहुत मुश्किल है पर मैं करता हूँ.गौर तलब है कि अब तो इस आदत के कारण ही उनके बहुत से किस्से कहानियां भी अख़बारों में भी छप चुके. टीवी चैनलों पर उनके प्रोग्राम भी दिखाए जा चुके लेकिन यह आदत कभी कम नहीं हुयी. वह इस वृद्ध अवस्था में भी सक्रिय हैं. 
एक बार यह बुज़ुर्ग एक विशेष आग्रह पर महाराष्ट्र में रोटरी क्लब के एक कार्यक्रम में गए. बहुत जोर देने पर जब बोलने लगे तो वहां भी कहने लगे देखिये मुझे सब अनपढ़ समझते हैं लेकिन मैंने पीएचडी की हुयी है. वास्तव में यह एक ऐसा कार्यक्रम थ जिसमें सवाल जवाब भी साथ साथ हो रहे थे. सो इस वृद्ध व्यक्ति से भी सम्मान सहित सवाल किया गया कि आपने किस विषय में पीएचडी की है. वहां भी जनाब बिना किसी झिझक के जवाब देते हुए बोले जी मांगने में. मैं मांगने में एक्सपर्ट हूँ.  इसके बाद जैसे ही उन्होंने मांगने का कारण और लम्बे समय से चल रहा अपना  मिशन बताया तो वहां नोटों की बरसात होने लागिओ और देखते ही देखते  इस वृद्ध की झोली भर गयी. 
मेरी मुराद है लुधियाना के जानेमाने धार्मिक व्यक्ति जनाब जगदीश बजाज से जो गरीब बच्चों को पढाने के साथ साथ गरीब विधवा महिलायों को हर महीने राशन भी वितरित करते हैं.  गरीब लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कम्प्यूटर, सिलाई, कढाई और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे कई और प्रोजेक्ट भी चलाते हैं. यह सब होता है लुधियाना के सुभानी बिल्डिंग चोंक में स्थित ज्ञान स्थल मन्दिर में. इस चौंक  की कई इमारतों में फैले इस मन्दिर को इस तरह की मजबूती देने में जगदीश बजाज ने अपनी उम्र का एक बहुत सा हिस्सा इस तरफ लगा दिया. 
मैंने एक बार पूछा बजाज साहिब लोग इस उम्र में आराम करते हैं और आप सारा सारा दिन काम. सुबह 9 नजे से लेकर मन्दिर के कार्यालय में बैठना दुखी लोगों के दुःख सुननाऔर फिर उनके कष्ट हरने के लिए मांगने के लिए निकल पड़ना. इस मिशन को लेकर फेसबुक जैसे मंच का इस्तेमाल भी बाखूबी करना...आखिर यह लगन आपको कहाँ से लगी. बजाज साहिब का चेहरा कुछ गंम्भीर हो गया.उनकी आँखें कहीं दूर अतीत में झाँकने लगीं. बस कुछ ही पलों का अंतराल और फिर बोले बात बहुत पुरानी है. हमने एक जागरण रखा था. मैं पंजाब केसरी पत्र समूह के मुख्य सम्पादक विजय चोपड़ा जी के पास गया और उन्हें निवेदन किया कि आप इस जागरण में मुख्य मेहमान बन कर आने की कृपा करें. उनके पास वक्त नहीं था और मैं उन्हें बार बार वक्त निकलने  के लिए विनती कर रहा था. इतने में ही दो महिलाएं वहां आयीं और विजय जी ने अपने किसी कर्मचारी को इशारा किया की इन्हें आटे की दो थैलियाँ  दे दो. इसके साथ ही विजय जी मुझे मुखातिब हो कर बोले अगर आप इस तरह का कोई काम करें तो मैं सुरक्षा का खतरा उठा कर भी वक्त ज़रूर निकालूँगा. मैंने उन औरतों का दर्द सुना तो मुझे अहसास हुआ कि यह काम कितना आवश्यक है.  मैंने तुरंत हाँ कर दी. इस तरह सितम्बर 1991 से केवल 51  विधवा महिलायों को राशन की राहत देने से शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी है. आज  यहाँ से राहत पाने वाली महिलायों की संख्या 51 से बढ़ कर 900 के आंकड़े को भी पार कर चुकी है.बहुत से नाम अभी प्रतीक्षा सूची में हैं.सन 2000 में यहाँ लडकियों को कम्प्यूटर सिखाने, सिलाई-कढाई सिखाने और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे काम भी सिखाये जा रहे हैं तांकि वे आत्म निर्भर हो सकें. 
अपने इस मिशन के लिए कई बार उन्हें इम्तिहान की घड़ियाँ  भी देखनी पड़ी. सन 2006 की 26  अप्रैल को उनकी धर्म पत्नी शांति देवी का हार्ट अटैक के कारण देहांत हो गया. रस्म क्रिया की तारीख भी आठ मई की निकली और विधवा महिलायों को राशन वितरित करने की तारीख भी पहले से ही आठ मई घोषित थी.दुःख और संकट की इस घड़ी में भी जगदीश बजाज ने कर्तव्य को नहीं भुलाया. क्रिया आठ की जगह छह मई को ही करली गई पर राहत के इस कार्यक्रम में कोई तबदीली नहीं की गयी. फिर सन 2010 में 30 दिसम्बर के दिन उनकी एक बहू का देहांत हो गया. उस समय भी रस्म क्रिया  ८ जनवरी को आती थी लेकिन इस रस्म को भी दो दिन पूर्व अर्थात 6 जनवरी को ही पोर कर लिया गया ता कि आठ जनवरी को होने वाले र्स्शन वितरण कार्यक्रम में कोई भी तबदीली न हो.  मैंने कहा आप कैसे इंसान हैं...अपने परिवारिक सदस्य को अंतिम विदा कहने के लिए एक आध कार्यक्रम भी इध उधर नहीं कर सकते....मेरी बात सुन कर उन्होंने एक लम्बा सांस लिया और बोले मैं नहीं चाहता था कि जो इंसान इस दुनिय से चला गया उसका दिन मनाते समय कोई बद दुया दे या फिर यह कहे कि इस मौत ने तो हमारा काम चौपट कर दिया.
दुनियादारी  का इतना लिहाज़  और दुखी लोगों से इतनी गहरी सम्वेदना रखने वाले जगदीश बजाज का जन्म हुआ था 10 अक्टूबर 1935 को कामरेड राम किशन के पडोस में पड़ते एक मकान में. यह मकान कोट ईसे शाह में था. झंग का यह इलाका अब पाकिस्तान में है. सं 1947 में जब हालात बिगड़े तो इस परिवार को भी पाकिस्तान छोड़ना पड़ा. कभी अमृतसर, कभी जालंधर और कभी कहीं. गर्दिश के दिन थे. आखिर 1950 में लुधियाना में आ गये. तब से लेकर यहीं पर कर्म योग की साधना  में लगे हुए हैं. सरकारी नौकरी से अपना काम और फिर अपने काम से जन सेवा का यज्ञ. आज इस यज्ञ में योगदान देने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है और इससे राहत लेने वालों की संख्या भी. ज्ञान स्थल मन्दिर अब मानव सेवा संस्थान के तौर पर स्थापित हो चूका है. यहाँ सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेद भाव के आते हैं.  अगर आप भी यहाँ आना चाहें तो आपका स्वागत है. आप कभी यहाँ आ सकते हैं.  --रेक्टर कथूरिया    

शनिवार, मार्च 10, 2012

डी डी जैन कालेज में भी दीक्षांत समारोह आयोजित

छात्रों को मिलीं डिग्रियां: डा. सी.एस.मीना थे मुख्य मेहमान
साधना जब सफल होती है और उसे मान्यता मिलती है तो साधना मार्ग में आये हुए सभी कष्ट भूल जाते हैं और दिलो दिमाग में रह जाती है एक ख़ुशी जिसकी बराबरी दुनिया के किसी भी सुख सुविधा में सम्भव ही नहीं होती. यह ख़ुशी व्यक्ति के अंग अंग से बोलती है. इस ख़ुशी की चमक आज फिर दिखाई दी लुधियाना में उन चात्रयों के चेहरों पर जिन्हें आज उच्च शिक्षा की डिग्री मिली. 
शिक्षा के क्षेत्र में एक अलग स्थान रखने वाले देवकी देवी जैन मैमोरियल कालेज फार विमेन की कन्वोकेशन आज बहुत ही उत्साह, हर्षो उल्लास और पारंपरिक जोशो खरोश से सम्पन्न हुयी. छात्रायों के चेहरे पर एक चमक थी, उपलब्धी की, एक अलौकिक सी दिखने वाली ख़ुशी थी जो बता रही थी उनकी मेहनत और शिक्षा साधना की पूरी कहानी. विश्व विधालय अनुदान  आयोग के संयुक्त सचिव  डाक्टर सी .एस.मीना इस यादगारी अवसर पर मुख्य मेहमान थे. 
कालेज के चेयरमैन हीरा लाल जैन, अध्यक्ष केदार नाथ जैन, वरिशाथ उपाध्यक्ष राज कुमार जैन और शांति सरूप जैन, प्रबन्धक कमेरी के सचिव बिपिन जैन, मैनेजर सुरिन्दर कुमार जैन और अफिशिएटिंग प्रिंसिपल सुरिन्दर दूया भी इस अवसर मर मौजूद रहे. 
प्रिंसिपल मैडम ने जहाँ कालेज की खूबियों और उपलब्धियों की चर्चा की वहां चात्रयों और उनके माता पिता की प्रेरणा और मेहनत  को भी सराहा. उनहोंने इस अवसर पर अपने उन सहयोगियों को भी बहुत ही स्नेह और समान से याद किया जो किसी समय उनके साथ इसी कालेज में अध्यापन करते थे पर अचानक ही ज़िन्दगी की राहें जुदा होने के बाद भी उनका विकास जारी रहा और साथ ही बना रहा कालेज के साथ उनका स्नेह सम्बन्ध. आज वे बहुत उच्च पदों पर या फिर सफलता के शिखरों पर कार्य कर रहे हैं पर इतने ऊंचे मुकाम पर जाकर भी वे लोग अपने इस कालेज को नहीं भूले.. इस तरह के लोगों में से एक डाक्टर परम सैनी भी आज कन्वोकेशन के सुअवसर पर यहाँ मौजूद थे जिन्हें प्रिंसिपल मैडम ने उसी पुराने स्नेह के साथ पम्मी मैडम कह कर पुकारा. पौने चार सो से अधिक छात्रायों ने अपनी मेहनत और साधना को  डिग्री के रूप में मिली मान्यता का सम्मान लेकर इस दिन को अपनी ज़िन्दगी का एक यादगारी दिन बनाया. इन छात्रायों ने मीडिया  से बात करते हुए भी कहा की उन्हें आज अपनी साधना पर गर्व है और ऐसे लगता है कि जैसे उनकी ग्रैजूएशन की शिक्षा आज मुकम्मल हुयी है. इस शुभ अवसर पर किसी के चेहरे पर हंसी थी तो किसी  की आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे. यह यादगारी आयोजन बाद दोपहर तक जारी रहा.-रेक्टर कथूरिया